कविता - 🌷" अनोखी प्यास "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
काश कोई अपना होता जिंदगी में, जिसके लिए
प्रेमसे बिना-झिझक जान भी हाजिर कर सकते
अब तो इस तरहसे बिछड़ गए हैं दुनियादारी में
और फ़ासले ऐसे हुए कि दरमियाँ कुछ रहा नहीं
सिलसिला जो बिना वजह शुरू तक नहीं हुआ
मन में सैकड़ों शिकवे हैं पर कोई गिला ही नहीं
वो बन गए हैं "जान", पर उनको कोई पता नहीं
सपनों में मिलना होता है पर उन्हें कुछ याद नहीं
चमन में खिले फूलों की महक मनको खिंचती है
पर लोग कहते हैं कि ऐसे कोई गुल खिले ही नहीं
न जाने नदी सागर को ढूंढने क्यों निकल पड़ती है
भला पानी को पाने की, ये कैसी अनोखी प्यास है
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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