कविता - 🌷 " अनछुआ आसमां "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - सोमवार, १७ जून २०२४
वेळ - रात्री, ७ वाजून ५९ मि.
मन एक ऐसा अद्भुत रसायन है कि,
आसानी से ध्यान में स्थिर होता नहीं
भूत-भविष्य-वर्तमानादी के विचारों के
भंवर में घिर कर, फंसा चारों तरफ से
मन कुछ डरा-डरासा सहमा-सहमासा
जैसे आसमान में बादल होते हैं इकठ्ठा
वें नये-नये रूप लेते हुए आकाश को
देते रहते चुनौतियां-फिर भी गगन को
कोई फर्क नहीं पड़ता, ना वो यूं डरता
वो सदा अपने काम में व्यस्त है रहता
कितने भी बादल भले ही मंडराने लगे
आसमां फिर भी अनछुआ ही रहता है
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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