कविता - 🌷 " अनगिनत एहसान "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
जैसे पहले पहल प्रेम का किया हो इज़हार
हवाओंके संग खुद महकता हुआ हरसिंगार
सुबह होते ही स्वयं बिखर के मनका आंगन
महका देता है मन को, बार-बार जैसे चन्दन
प्यार के बिना, बाग़में फूल भी खिलते नहीं
मन में खिलें चमन को, विरान होते देर नहीं
कोशिशें की, पर एक भी एहसास ऐसा नहीं
जब मन में एक मीठी सी चुभन भी घेरी नहीं
हरेक बार जब जब भी ज़िक्र हुआ साजनका
घंटोंकी गुफ़्तगू लगी, सपना आधा-अधूरा सा
हदोंका एहसास सिर्फ वक्त ही बताएगा वरना,
खुद को दरिया ही समझ लेगा हर कोई झरना
मोहब्बत का ताल्लुक भी, बड़ा है अजीब सा…
साथ कोई नहीं है पर साया भी एहसास जैसा
अनगिनत एहसान हैं दाता के हम सब ही पर
एक ही पल में खुशियां झलकती हैं, लबों पर
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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