कविता -🌷" अनंत हस्त "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
मानवी-जीवनमें काफ़ी बार ऐसा कुछ हो जाता है कि
भगवान की दयासे, छूते ही हरेक-चीज-सोना बनती है…
इन्सानको लगने लगता है कि उसमें खूब ख़ासियतें है…
उसे गर्व होता है, कि यह सब उसीका किया-कराया है…
यकायक एक-एक करते हुए सब नौ-दो-ग्यारह होता है
बंदा उलझनमें पड़ता है कि भला ये-सब क्यों-हो-रहा-है…
बंदे को पता ना चले हर चहीती-चीज, देखते-देखते ही…
बिना जाने-समझे आंखोंसे, हाथों से ओझल हो रही है…
जो कमाया, बिना वजह हाथों से फिसल कर जा रहा है…
फ़िर आख़िर वो भगवानकी शरणमें पनाह ले ही लेता है…
विपरित स्थितियोंका सामना करते-करते थक जाता है
तब इंसान स्वयं को, परमात्मा के हवाले कर ही देता है…
उसी लम्हें से, मानो पूरी कायनात, हाज़िर हो जाती है…
बिना-विलम्ब, पूरा बोझ ही हल्का-हल्का होता जाता है…
दश-दिशाओं से मदद के अनगिनत-अनंत-हाथ-ईश्वर के…
जिन्हें हम महसूस-तो-कर-सकतें हैं, पर दिखाई-नहीं-देतें…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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