कविता – 🌷 ‘ अद्भुत एहसास ‘

कविता - 🌷 ' अद्भुत एहसास '
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
तारिख - शुक्रवार, १० मई २०२४
समय - दोपहर ३ बजकर १७ मि.

सुख और दुख तो होते है स्वयंके ही भीतर
कभी टटोल के तो देखिए, स्वयं का अंतर 
क्या फायदा जा-जाकर मंदिर, गिरिजाघर 

वहां भी नही हैं नाम-मात्र के भी परमेश्वर 
वो खुद बिराजे हैं, सदा मन-मन के अंदर
मनुष्य हो-प्राणी-मात्र या चिटी-हाथी-बंदर

लहलहाते खेतों में प्रकटते हैं, बन कर धान
अंश-रुप में हैं वो सृष्टि के कण-कण समान
चराचर धरती, अंबर, वृक्ष, बेला, फूल पान

जिधर भी डालें नजर वहीं झांकते चुपके से
चिड़ियों की चहचहाट, कोयल की कुहुक में
झरने के मधुर गुंजन में-मोर पंखों के रंगो में

धरती से लेकर आकाश तक इनका निवास
संवेदनाओं के रुप में होता, इनका आभास
संवेदनशील मन को देते हैं, अद्भुत एहसास

🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
🙏🕉️🌅


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