कविता : 🌷 " मुट्ठी में बंद "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
ज़िंदगी के हर मोड़पर मिला है जिनका साथ…
जाने-अंजाने में कब, छूट गया हाथों से हाथ…
घर-संसार-प्यारमें रफ़्ता-रफ़्ता ऐसे डूबे हीं रहे…
कुछ पता ही नहीं चला, कि वो तो रूठे हुए हैं…
पता न था, ज़िंदगी के रास्ते ऐसे टेढ़े-मेढ़े होंगे…
कुछ सब्र सिखानेवाले तो कुछ सबक देनेवालें…
वे जो चले गये दे कर गहरा, यह दिल का दर्द…
अब आते-जाते-दिन वो ही बन बैठा है हमदर्द…
यादों का एहसास हर एक पल पर सवार हुआ…
इंतज़ार में जहां दर्द, कलेजा चिर के बैठा हुआ…
याद के सिवा हरेक दिन जाने का नाम न लेता…
ढलता सूरज भी सुनहरे लम्हों की यादें ही देता…
कश्ती डूबनेको है, मंज़र का कहीं पता भी नहीं…
यूं सब-कुछ होते हुवे भी, हाथों में कुछ भी नहीं…
माना के खाली हाथ ही आए हैं, मुट्ठी बंद कर के…
पर ज़िंदगीभर के सबसे हसीन पल, मुट्ठी में बंद हैं…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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