कविता :🌷 ” बेहतरीन सा मुक़ाम “

कविता - " बेहतरीन सा मुक़ाम "

कविता - 🌷 " बेहतरीन सा मुक़ाम "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले

वो आशाएं ही हैं, जो देती हैं ज़िंदगी में नया मुक़ाम…
इंतज़ार हसीन पलोंका है फ़िर चिंता का क्या काम ?

शीशा और दिल दोनों ही होे जातें हैं, इतने नाज़ुक से
संभालें तो संभलते नहीं, यूं ही हाथोंसे फिसलतें जाएं…

चोरी-चोरी दिलके दर्पण में झांक कर जब की गुफ्त़गू …
फूल तो फूल तब तो काँटों से भी, निकल आई खुश्बू …

मन खुशियों से भर जाएं तो पूरा माहौल होवे मदहोश…
यादों के दायरेमें गर गुमसुम सारा जहां, हरेक ख़ामोश…

एक समय था जब बहारों पर बेहद नाज़ किया करतें…
अब समां है कि सपनों की दुनिया से बाहर नहीं जातें…

पता नहीं सिलसिले दिलोंके कब शुरू हो या थम जाएं…
चलो इसी बहाने एक बेहतरीन सा मुक़ाम ढूंढ़ निकालें…

🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
🙏🕉️🔆

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