कविता - 🌷 " बाँहें पसारें "
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
हररोज-सवेरे ओस के बड़े-बड़े बूंदों की चमक…
सुगंध भरे रंगीन फूलों की, मन-भावन सी महक…
बाग़ का हर फूल तरसता है, ओस की चाहत में…
जैसे तरसता है हर कोई अच्छे दिलवालों केलिए…
जन्म से जुड़े रिश्ते-नाते, अपने-आप ही होतें हैं…
जो दिल से जुड़े हुए रिश्ते हो, अधिक गहरें होंगे…
दिन-रात पहरा-देनेवाले-ऊंचे-पर्वतोंकी चोटी पर…
शुभ्र बर्फ़ीली हसीन सी चादर मानो बिछायी जाएं…
मौसमों का अलग मिज़ाज पर सुंदर से हैं नज़ारे…
लगता है कुदरत स्वयं उतर आयी है, बाँहें पसारें…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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