कविता : 🌷 " जल बिन मछली "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
ज़िंदगी भी देखो, किसी हादसे से कम नही है…
दो अनजानों को अचानक यूँ ही मिला देतीं है…
सपना तो देख लिया पर वो चेहरा भूल ना सकें
उम्मीद का दिया जलता रखा है दिल ही दिलमें…
कल तक जिनका अता-पता भी मालूम न था
बिना सोचे समझे बावरा दिल उनका बन बैठा…
हाल ये है कि सोते-जागते बेचैनी बढ़ती जा रही
मन में ऐसी लगन लागी, जैसे जल बिन मछली…
जनाब का ख़्याल आने पर मन में हलचल मची
दिलवालों ने बड़े शानों-शौक़ से कहानी बना दी…
एक उम्र गुज़र गई है, बस्स झलक पाने के लिए
कब मुलाक़ात होगी यें तो सिर्फ़ भगवान ही जानें…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
🙏🕉🔆
Leave a Reply