कविता - काश ऐसा कोई
कवयित्री - तिलोत्तमा विजय लेले
काश ऐसा हो जाए, हर ख़्वाहिश पूरी होती जायें…
काश हम परिंदे होतें, आज़ाद उड़ान भरते गगनमें…
दिन भर खाने की तलाशमें और रात चैनसे सोतें…
ना-कोई-झिझक ना-कोई-फ़िक्र, आस्मां को छूं लें…
जज़्बात ही काफ़ी है, लफ्ज़ों की जरूरत ही नहीं
वैसे नैनोंकी भाषा है सरलसी सब कुछ कह डालें…
काश शब्दों-बातोंमें बयां करनी पड़ी, दिल की बात,
लबोंसे कहना मुमकिन ही नहीं, ज़िंदगीभर का साथ…
काश कोई अपना ही होता, बिना किसी मतलब के…
काश कोई वाक़िफ हो किसी और के भी जिंदगीसे…
सुबह सुबह आंख खुलते ही रात-पिघल-कर-मुठ्ठी-में…
काश-ऐसा-कोई-जादू कर दें, ख़्वाब-सच्चाई-बन-बैठे…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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