कविता : 🌷 " बिना सोचे-समझे "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
राहत मिल सकेगी हमें अगर चाहत होगी दिलमें
फ़िर दुनिया चाहे, कितने झमेलों में क्यूं न डालें…
आवाज़ की पहुँच सिर्फ कान तक ही सीमित है
ख़ामोशीकी सरगोशी आस्मां तक अपरिमित है…
समय समयकी बात होती है जब एकही पल में,
दुनिया और दुनिया-दारी, दोनों बदलने लगती है…
कल तक जो धूप, दिल को पूरा सुकून देतीं थीं,
वो ही धूप देखते-देखते देने लगती है जलन सी…
दो-चार दिनों की यह ज़िन्दगानी, पर सब्र नहीं है…
अनमोल खजाने मिले हैं, पर उनकी कद्र कहां है…?
ये जो ज़िंदगी मिली है हमें, जी लेनी है जी भरके…
वरना वो तो यूँ ही गुज़र जाएगी बिना सोचे-समझे…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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