कविता : 🌷 " काश कोई अपना होता "
कवयित्री : तिलोत्तमा विजय लेले
काश कोई अपना होता जिंदगी के सफ़र में,
ना झिझकेंगे, अपनी जान हाजिर कर देने में…
बिना वजह एक मीठा सा अहसास होने लगा…
अपने-आप अश्क बनके यूं पिघलता ही चला…
दुनियादारी में अब इस तरह से बिछड़े हुएं हैं,
के फ़ासलों के सिवा दरमियाँ कुछ भी नहीं है…
हाथों में लेकर आए, अपना-अपना खुश-नसीब…
पर ग़लत कर्मोंका नतीजा होता है अजीबोग़रीब…
साक्षात् कोहीनूर हीरा मिलने पर भी खुश-ही-नहीं
सोएं-हुए-को-जगाया जा सकता है, ढोंगी को नहीं
चांद-सूरज सब जानते हैं मन में होते-हुए-आंदोलन
कश्मीर की हसीं वादियों में प्यारका अनोखा बंधन
काश ऐसी अद्भुत-जादूगरी-करने, दुबारासे आ जाएं…
मन-के-समुंदरमें इस प्रेम-भरी-कश्ती को पार लगाएं…
🌷@तिलोत्तमा विजय लेले
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